BA Semester-3 Bhoogol - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-3 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 भूगोल

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :215
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2641
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 भूगोल सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 14

आपदा एवं आपदा प्रबन्धन

(Disaster and Disaster Management)

 

प्रश्न- प्राकृतिक आपदाओं के प्रकार एवं आपदा प्रबन्धन का वर्णन कीजिए।

अथवा
विध्वंसक प्रबन्धन पर एक लेख लिखिए।
अथवा
प्राकृतिक आपदाएँ क्या हैं? स्वयं को इससे बचाने के कुछ उपाय बताइए।

उत्तर-

प्राकृतिक आपदाओं के प्रकार- प्राकृतिक आपदाओं को मुख्यतः दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है-

1. पार्थिव प्राकृतिक आपदायें,
2. पृथ्व्येतर प्राकृतिक आपदायें।

1. प्राकृतिक आपदायें - इनके अन्तर्गत पृथ्वी के उन प्रकमों को सम्मिलित किया जाता है, जिनके द्वारा पृथ्वी की आपदापन्न घटनाएँ उत्पन्न होती हैं ( सिंह, 1991)। इनको भी उत्पत्ति स्रोत के आधार पर दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है— (i) पार्थिव या अन्तर्जात प्रक्रमों द्वारा उत्पन्न आपदायें तथा (ii) बहिर्जात या वायुमण्डलीय दशाओं से उत्पन्न आपदायें। प्रथम वर्ग में भूकम्प, ज्वालामुखी, वृद्ध स्तर पर घटित भूस्खलन तथा हिमस्खलन को सम्मिलित किया जाता है। ये आपदायें पृथ्वी के अन्तर्जात बलों द्वारा व आन्तरिक तापीय दशाओं के उपरान्त उत्पन्न होती हैं। इनमें अधिकांश प्राकृतिक आपदाओं की उत्पत्ति महाद्वीपीय एवं महासागरीय प्लेटों के संचलन के कारण होती हैं। यथा 26 जनवरी, 2001 को गुजरात का भूकम्प अकेबियन प्लेट तथा इण्डियन प्लेट के संचलन के उपरान्त उत्पन्न हुआ।

प्लेटों का संचलन पृथ्वी के आन्तरिक भागों में तापीय दशाओं के कारण उत्पन्न संवहनीय तरंगों के परिणामस्वरूप होता है। संयुक्त राज्य अमेरिका के डेनवर में स्थित विश्व भूकम्पमापी आंकड़ा केन्द्र के अनुसार 26 जनवरी, 2001 में गुजरात में आने वाले भूकम्प भारतीय प्लेट के उत्तर की ओर यूरेशियाई प्लेट से टकराने से उत्पन्न हुआ।

प्राकृतिक आपदायें निम्नलिखित हैं-

(i) भूकम्प
(ii) ज्वालामुखी
(iii) हिमस्खलन
(iv) भूस्खलन,
(v) चक्रवात एवं
(vi) बाढ़।

(i) भूकम्प – पृथ्वी की चट्टानों से होकर दोलनकारी तरंगों के गुजरने से उत्पन्न कम्पन्न को 'भूकम्प' कहते हैं। इसके आने के विभिन्न कारण होते हैं, जिनमें ज्वालामुखी क्रिया, भ्रंशन क्रिया, समस्थितिक समायोजन आदि प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त पर्वतीय स्थानों पर भूस्खलन तथा महाद्वीपीय जलमग्न वट का यकायक टूटना आदि स्थानीय कारण भी सम्मिलित हैं। भूकम्प की तीव्रता मरकेली तथा रिक्टर पैमाने की सहायता से मापी जाती है।

(ii) ज्वालामुखी क्रिया- ज्वालामुखी क्रिया भी भूकम्प की तरह एक प्रमुख आपदापन्न प्राकृतिक घटना है। ज्वालामुखी विस्फोट के अनेक कारण बताये जाते हैं, जिनमें पृथ्वी तल के अन्दर दरारों, ज्ञरा जल का प्रवेश, वलनों का प्रभाव, रेडियो एक्टिव कणों की उपस्थिति आदि प्रमुख हैं। ज्वालामुखी क्रिया द्वारा भूगर्भिक संरचना में परिवर्तन होता है।

(iii) हिमस्खलन - उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में हिमस्खलन के कारण प्रभावित क्षेत्रों में काफी हानि पहुँचती है। लेकिन इस क्रिया का प्रभाव अधिक व्यापक नहीं होता है।

(iv) भूस्खलन — भूस्खलन एक प्रमुख प्राकृतिक आपदा है। इस घटना में भूमि का एक भाग टूटकर निम्नतर भागों की ओर खिसकता है। यह क्रिया गुरुत्वाकर्षण द्वारा प्राकृतिक रूप से होती है। यह क्रिया अधिकांशतः पर्वतीय उच्च प्रदेशों में होती है। स्ट्रेलर के अनुसार, "पर्वतीय ढाल पर किसी भी चट्टान का गुरुत्वाकर्षण के कारण नीचे की ओर खिसकना भूस्खलन कहलाता है।" यदि यह खिसकाव मंद गति से हो तो इसे मृदा खिसकाव कहते हैं तथा जब वृहद स्तर पर बड़े शिलाखण्डों का खिसकाव होता है तो इसे भूस्खलन कहते हैं। ये दो प्रकार का होता है—

(अ) चट्टानी खिसकाव - इसमें चट्टानों का आधारी आववण वृहद् रूप में खिसकता है, जो भ्रंशों या आवरण तल के रूप में खिसकती हैं।

(ब) अचानक गिरना – इसमें ऊपरी उत्तर ढाल से यकायक चट्टानें खिसकती हैं।

भूस्खलन एक प्रमुख प्राकृतिक आपदा के रूप में जान-माल की हानि के अतिरिक्त पर्यावरण सन्तुलन को भी प्रभावित करते हैं। सन् 1911 में पामीर क्षेत्र में 7-8 हजार टन का प्रस्तरखण्ड खिसककर एक नदी के प्रवाह क्षेत्र में जा पहुँचा जिसके कारण सेरेज झील का निर्माण हुआ। यह झील 80 किलोमीटर लम्बी है। भारत में नैनीताल क्षेत्र में 1880 में एक विशाल भूस्खलन हुआ, जिसमें 150 लोग मारे गये। भूस्खलन विभिन्न कारणों से होता है, जिनमें पृथ्वी की आन्तरिक हलचल, भूसन्तुलन का बिगड़ना, जल द्वारा कटाव, ज्वालामुखी उद्गार तथा भूकम्प प्रमुख हैं।

(v) चक्रवात- ये समस्त आपदायें जलवायु तथा मौसम सम्बन्धी चरम घटनाओं से सम्बन्धित होती हैं। दीर्घकालिक आपदाओं में बाढ़, सूखा, ताप तथा शीत लहर आदि को सम्मिलित किया जाता है, जो संचयी प्रवाह वाले होते हैं। आकस्मिक आपदाओं में उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात व तूफान सम्मिलित हैं। इन चक्रवातों में निम्न प्रमुख हैं-

(अ) हरिकेन,
(ब) टायफन,
(स) टारनेडो,
(द) विलीविली।

हरिकेन उत्तरी अटलाण्टिक महासागर विशेषतः कैरबियन सागर एवं दक्षिण संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रभावशील है। टायफून उत्तरी प्रशान्त महासागर विशेषतः चीन सागर, चीन के पूर्वी तथा दक्षिणी तटीय भाग, जापान तथा फिलीपाइन्स में, बांग्लादेश, भारत का पूर्वी तट अरब सागर में चक्रवात तथा आस्ट्रेलिया में विली विली प्रभावशील हैं।

उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात अचानक उत्पन्न होकर इतने तीव्र वेग से प्रवाहित होते हैं कि समुद्री जल में भी प्रलयंकारी तरंगें उत्पन्न हो जाती हैं। इन तरंगों को तूफान तरंग या ज्वारीय तरंग कहते हैं। उत्तरी ऑस्ट्रेलिया के डार्विन नगर में सन् 1974 में ट्रेसी चक्रवात के कारण 49 व्यक्ति मारे गये। टाइफून से सन् 1881 में 3 लाख लोग मारे गये।

(vi) बाढ़ - बाढ़ भी एक प्राकृतिक आपदा है, जिसके कारण विस्तृत क्षेत्र जल प्लावित हो जाता है। इस कारण कृषि का विनाश होता है। वनस्पति समाप्त होकर मृदा अपरदन तीव्र हो जाता है। आवासीय बस्तियाँ जलमग्न हो जाती हैं। मनुष्य, पशु एवं पक्षी बाढ़ रूपी काल के ग्रास बन जाते हैं। बाढ़ के उपरान्त विभिन्न क्षेत्रों में जल के फैलने से विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ दूषित जल एवं दलदली क्षेत्रों में उत्पन्न होती हैं। भारत में बाढ़ग्रस्त क्षेत्र से बहुत हानि होती है। सितम्बर, 2000 में पं. बंगाल में बाढ़ से लगभग 1000 लोग मारे गये। पी. के. सेन ने बाढ़ से होने वाली पर्यावरणीय क्षति के बारे में लिखा है कि, “बाढ़ की आपदा एक क्षेत्र के पर्यावरण के लिए गम्भीर समस्या को जन्म देती है, क्योंकि इससे अनेक प्राकृतिक क्रियाओं में एकाएक परिवर्तन आ जाता है। अपरदन की गति में वृद्धि हो जाती है। परिवहन क्रिया अधिक होती है। साथ में निक्षेप भी अधिक होने से मृदा की संरचना एवं पर्यावरण के अन्य पक्षों पर प्रभाव पड़ता है।”

2. पृथ्व्येतर प्राकृतिक आपदायें - पृथ्वी के बाहर से घटित आपदाओं को पृथ्व्येतर आपदायें कहते हैं, ये क्षुद्रग्रह, मध्यवर्ती गृह तथा पुच्छल तारों की टक्कर के कारण उत्पन्न होती हैं। इनकी पृथ्वी की बाहरी वस्तुओं से टक्कर के कारण अपार धूल-राशि उत्पन्न होती है। महासागरों में ज्वारीय तरंगें उठती हैं, सागर तल में परिवर्तन, जलवायु में परिवर्तन, स्थलाकृतियों में परिवर्तन, ज्वालामुखी क्रिया तथा भूतल पर गर्तों का निर्माण आदि परिवर्तन होते हैं। इस प्रकार की अनेक आपदायें प्रकट हो चुकी हैं। विद्वानों के एक वर्ग का मानना है कि क्रिटेशियस युग के अन्त तथा टर्शियरी युग के प्रारम्भ में आज से लगभग 65 मिलियन वर्ष पूर्व कुछ जन्तुओं का सामान्यतया तथा डायनोसोर का सामूहिक विलोपन पृथ्वी के एक वृहदाकार क्षुद्रगृह समूह के मध्य टक्कर के कारण हुआ था। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय की बर्कल स्कूल के लुइस अलवारेज तथा वाल्टर लवारेज ने बताया कि आज से 650 लाख वर्ष पूर्व एक 10 कि.मी. चौड़े पुच्छल तारे की पृथ्वी से जबर्दस्त भिड़न्त हुई थी, जिसके परिणामस्वरूप अपार धूलराशि उत्पन्न हुई, जिससे वायुमण्डल में धूल का सघन आवरण बन गया तथा कई वर्षों तक अन्धकार छाया रहा।

आपदा प्रबन्धन

प्रकृति में भूकम्प, ज्वालामुखी उद्गार, बाढ़, सूखा, चक्रवात, हरिकेन, टारनैडो, टाइफून, भूस्खलन आदि अपना प्रभाव डालते हैं। इन क्रियाओं के प्रकोप से मानव तथा अन्य जीव-जन्तु प्रभावित होते हैं, विगत दशकों में देश के लगभग सभी भागों में महाविपत्तिकारी घटनाएँ घटी हैं।

पृथ्वी पर प्रत्येक स्थिति में कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में आपदायें उत्पन्न हो रही हैं। जल के अभाव में भीषण सूखा (उ. प. भारत, अफ्रीकी सहेल प्रदेश) पड़ता है, तो जलाधिक्य की स्थिति में बाढ़ की स्थिति बन जाती है। जैसे— पश्चिमी भारत में भीषण सूखा पड़ रहा है तथा पूर्वी भारत में बाढ़ की स्थिति बन रही है। इस प्रकार असन्तुलन की स्थिति में भूकम्प एवं भूस्खलन की घटनाएँ हो रही हैं। वर्षों से सन्तुलित अवस्था में चल रहे मानसून को नूतन वर्षों में उत्पन्न अलनिनो ने प्रभावित किया जिस कारण दक्षिणी-पूर्वी एशिया के अनेक स्थानों को सूखे की स्थिति का सामना करना पड़ा। पृथ्वी पर समतल एवं उर्वर क्षेत्रों में भी आपदापन्न घटनाएँ होने लगी हैं। समतल क्षेत्रों में सघन कृषि करने के लिए भूजल संसाधन का अन्धाधुन्ध दोहन किया गया, जिससे भयंकर जल संकट उत्पन्न हो गया तथा ऐसी स्थिति में दूसरी आपदाओं की तीव्रता बढ़ जाती है। 26 जनवरी, 2001 को गुजरात में आये भूकम्प के बारे में शोध के उपरान्त स्पष्ट हुआ है कि राजस्थान के विभिन्न भागों में नलकूप लगवाकर भूजल का अतिदोहन किया जा रहा है जिसके दुष्परिणाम आने वाले समय में भूकम्प जैसी भीषण प्राकृतिक आपदा के रूप में सहन करने पड़ सकते हैं। दोहन के अनुपात में भूजल का पुनर्भरण न होने पर आन्तरिक चट्टानों में तनाव व फैलाव होता है तथा चट्टानों में दरारें आ जाती हैं जिस कारण भूजल के परस्पर एक-दूसरे जलमरे में संचरित होने पर भूगर्भिक असन्तुलन उत्पन्न हो सकता है तथा साथ ही इन फ्रेक्चर वाली चट्टानों के टकराने की आशंका बनी रहती है। प्राकृतिक आपदा प्रबन्धन के निम्नलिखित तीन चरण होते हैं-

1. आपदाओं के आने की भविष्यवाणी करना या पूर्वानुमान लगाना।

2. आपदा आने के उपरान्त तुरन्त राहत सामग्री पहुँचाना।

3. आपदाओं के रोकथाम के उपाय करना तथा सीमा तक समायोजन के उपाय करना।

किसी व्यवस्थित क्रम में तैयार की गई आपदा प्रबन्धन योजना के निम्नलिखित छः चरण होते हैं-

1. आपदा रोकथाम,
2. आपदा का प्रभाव कम करना,
3. आपदा से निपटने की तैयारी,
5. आपदा राहत एवं पुनर्वास तथा
4. आपदा आने पर कार्यवाही करना,
6. आपदा एवं विकास।

1. आपदा रोकथाम - आपदा की रोकथाम के उपायों में वे सभी कार्य सम्मिलित हैं, जो किसी प्राकृतिक प्रकोप को आपदा में परिवर्तित होने से रोकने के लिये किए जा सकते हैं। यह स्पष्ट है कि समुद्री तूफान, बाढ़ और हिमस्खलन जैसे प्राकृतिक खतरों को रोकने के लिए कुछ नहीं किया जा सकता लेकिन उनके आपदाकारी प्रभावों को रोकने के लिए प्रयास किये जा सकते हैं। उदाहरण के लिए 29 अक्टूबर, 1999 को उड़ीसा में आये भीषण समुद्री तूफान की पूर्वसूचना सम्बन्धी जिलों में वायरलेस एवं आकाशवाणी द्वारा 25 अक्टूबर, 1999 को दे दी गई थी। इसी प्रकार 1998 के गुजरात तूफान के समय भी इसके अरब सागर में उत्पन्न होते ही गुजरात एवं समीपवर्ती क्षेत्रों को इसकी पूर्व सूचना दे दी गई थी। रोकथाम के कुछ राष्ट्रीय विकास के अन्तर्गत आते हैं, जबकि अन्य का सम्बन्ध विशेष आपदा प्रबन्ध कार्यक्रमों के साथ है।

2. आपदा का प्रभाव कम करना - आपदा का प्रभाव कम करना आपदा प्रबन्धन योजना का प्रमुख हिस्सा है। सामान्य शब्दों में, प्रभाव कम करने के अन्तर्गत उन सभी उपायों को सम्मिलित किया जाता हैं, जिनमें से किसी क्षेत्र के लोगों को आपदा से यथासम्भव बचाने में मदद मिलती है। प्रभाव कम करने की आधारभूत नीतियों में भूमि उपयोग को नियन्त्रित करना, आपदा प्रतिरोधी आदर्श भवनों का निर्माण करना, सामुद्रिक गतिविधियों को नियंत्रित करना, भवन निर्माण सम्बन्धी उपयुक्त संहिता एवं भवनों के वास्तुशिल्प सम्बन्धी डिजाइन तैयार करना ताकि चट्टानों को गिरने से रोकने के लिए अवरोधक खड़े करना आदि उपाय सम्मिलित हैं।

इनके अतिरिक्त जलग्रहण प्रबन्ध, श्रेणियों में सुधार, फसल चक्र, मवेशी प्रबन्धन और मृदा संरक्षण प्रविधियाँ भी आपदाओं का प्रभाव कम करने में महत्त्वपूर्ण सहयोग करती हैं। गैर रचनागत उपायों में आपदाओं से रक्षा के लिए पर्याप्त कानून, नियम और उपनियम, बीमा एवं ऋण योजनाएँ, शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रम, स्वयं सहायता समूह को सक्रिय बनाना, उपयुक्त चेतावनी प्रणाली और संस्थाओं की स्थापना जैसे उपाय सम्मिलित हैं।

3. आपदा से निपटने की तैयारी - आपदाओं से निपटने की तैयारी सम्बन्धी उपाय निश्चय ही राष्ट्रीय आपदा तैयारी योजना के दायरे में आने चाहिए और साथ ही विशेष आपदा की स्थिति में केन्द्र, राज्य, जिला और खण्ड स्तर पर अल्प एवं दीर्घ अवधि की योजनाएँ बनाई जानी चाहिए। बाढ़, सूखा, तूफान और भूकम्प जैसी आपदाओं के लिए अलग-अलग आपात योजनाएँ, राहत योजनाएँ तथा पुनर्वास योजनाएँ बनायी जानी चाहिए।

4. आपदा आने पर कार्यवाही करना - आपदा आने पर तुरन्त कार्यवाही करनी चाहिए अन्यथा दूसरी अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं जैसे 1999 के उड़ीसा तूफान के कारण उपजी महामारी की आशंका आदि ऐसी ही सम्बद्ध समस्याएँ हैं, अतः तुरन्त यथासम्भव कार्यवाही की जानी चाहिए।

5. आपदा राहत एवं पुनर्वास- आपदा ग्रस्त क्षेत्र में आपदा के स्वरूप एवं सहने की क्षमता अनुसार राहत एवं पुनर्वास के कार्य चलाए जा सकते हैं। आपदा के उपरान्त सहायता की आवश्यकता, प्रकार, मात्रा तथा अवधि का निर्धारण करने में इससे सहायता मिलती है।

6. आपदा एवं विकास - आपदाओं का प्रत्यक्ष सम्बन्ध विकास से होता है। जनहानि के अतिरिक्त अनेक ऐसी क्रियाएँ या तो मन्द हो जाती हैं या विनष्ट हो जाती हैं, जो विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। आपदा होने वाली क्षति विकास में बाधा बनती है।

आपदा क्षति का संग्रहण एवं पूर्वानुमान आपदा के कारगर प्रबन्धन में सहायक हो सकते हैं। आपदा मानचित्र तैयार करना भी उन सर्वाधिक कारगर उपायों में से एक है जिनसे आपदा प्रबन्धन के विभिन्न पहलुओं के बारे में आँकड़े एकत्र कर, उनका विश्लेषण किया जा सकता है। आपदा की आशंका वाले प्रमुख स्तोत्रों के मानचित्र तैयार किए जा सकते हैं, जिनमें भूकम्पीय गतिविधियों वाले क्षेत्रों, लघुस्तर पर औद्योगिक क्षेत्रों, भूमि उपयोग की योजना, प्राकृतिक भूगोल, जल विज्ञान, भू-विज्ञान, जनसंख्या वितरण के बारे में स्थानीय आँकड़ों का विश्लेषण तथा आपदा की आशंका वाले क्षेत्रों का सामाजिक-आर्थिक स्वरूप आदि तथ्यों को रेखांकित किया जा सकता है।

आपदा की आशंका वाले क्षेत्रों में उपग्रह आधारित विश्वसनीय एवं बेजोड़ संचार प्रणाली का विकास किया जा सकता है। इस दिशा में भारत में प्रयास किया गया है, जिसे आपदा चेतावनी प्रणाली का नाम दिया है। अब हवा के न्यून दबाव वाले क्षेत्रों का 72 घण्टे पहले पता लगाया जा सकता है। आपदाओं का पहले से ही कारगर प्रबन्ध करने के लिए हमारे पास एक समुचित, विश्वसनीय और समयानुकूल आगाह करने वाली चेतावनी प्रणाली होनी चाहिए, जो विश्वसनीय पूर्वानुमानों के आधार पर सम्भव हो सकती है। सही-सही पूर्वानुमान केवल उन्हीं आपदाओं के बारे में व्यक्त किया जा सकता है, जिनके बारे में पूर्वसूचनाएँ मिल सकें। इस प्रकार सूचनीयता, पूर्वानुमान एवं चेतावनी के मध्य एक महत्त्वपूर्ण सम्बन्ध है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- पर्यावरण के कौन-कौन से घटक हैं? स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रश्न- पर्यावरण का अर्थ बताइये।
  3. प्रश्न- पर्यावरण की परिभाषायें बताइये।
  4. प्रश्न- पर्यावरण के विषय क्षेत्र को बताइए तथा इसके सम्बंध में विभिन्न पहलुओं की विवेचना कीजिए।
  5. प्रश्न- पर्यावरण के मुख्य तत्व कौन-कौन से हैं? स्पष्टतया समझाइए।
  6. प्रश्न- पर्यावरण भूगोल के विकास की विवेचना कीजिए।
  7. प्रश्न- पर्यावरण के संघटकों को समझाइए।
  8. प्रश्न- पर्यावरण के जैविक तत्वों पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  9. प्रश्न- पारिस्थितिकी की मूलभूत संकल्पनाओं का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  10. प्रश्न- पारिस्थितिकीय असंतुलन के कारणों का परीक्षण कीजिए एवं उसे दूर करने के उपायों की व्याख्या कीजिए।
  11. प्रश्न- पारिस्थितिक संतुलन की सुरक्षा हेतु कारगर योजना नीति पर प्रकाश डालिए।
  12. प्रश्न- पारिस्थितिकी क्या है?
  13. प्रश्न- पारिस्थितिकी की परिभाषायें बताइये।
  14. प्रश्न- पारिस्थितिकी के उद्देश्यों को बताइये।
  15. प्रश्न- पारिस्थितिकी समस्याओं के कारकों को बताइये।
  16. प्रश्न- पारिस्थितिक सन्तुलन पर टिप्पणी लिखिये।
  17. प्रश्न- जैविक संघटक के आधार पर पारिस्थितिकी का वर्गीकरण कीजिए।
  18. प्रश्न- भारत में पारस्थितिकी विकास में भौगोलिक क्षेत्र की व्याख्या कीजिए।
  19. प्रश्न- स्वपारिस्थितिकी किसे कहते हैं?
  20. प्रश्न- समुदाय पारिस्थितिक क्या है? इसके उपविभाग को समझाइए।
  21. प्रश्न- पारिस्थितिक असन्तुलन एवं संरक्षण पर टिप्पणी कीजिए।
  22. प्रश्न- पारिस्थितिक अध्ययनों के विकास पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- मानव पारिस्थितिकी क्या है?
  24. प्रश्न- ग्रिफिथ टेलर का योगदान क्या है?
  25. प्रश्न- पारिस्थितिकी तंत्र की संकल्पना, अवयव एवं कार्यप्रणाली की विवेचना कीजिए।
  26. प्रश्न- पारिस्थितिक तंत्र को परिभाषित कीजिए।
  27. प्रश्न- पारितंत्र की संकल्पना पर प्रकाश डालिए।
  28. प्रश्न- पारिस्थितिक तंत्र की विशेषताओं को बताइए।
  29. प्रश्न- निवास्य क्षेत्र के आधार पर पारिस्थितिक तंत्र का वर्गीकरण कीजिए।
  30. प्रश्न- पारिस्थितिक तंत्र के संघटकों को बताइए।
  31. प्रश्न- मनुष्य पारिस्थितिक तंत्र में अस्थिरता उत्पन्न करता है।' व्याख्या कीजिए।
  32. प्रश्न- पारिस्थितिकीय दक्षता का क्या महत्व है?
  33. प्रश्न- भारतीय संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण कैसे निहित है? उल्लेख कीजिए।
  34. प्रश्न- पर्यावरण के सन्दर्भ में पारम्परिक ज्ञान से आप क्या समझते हैं?
  35. प्रश्न- प्राकृतिक आपदा "भूकम्प" की विवेचना कीजिए।
  36. प्रश्न- पारम्परिक ज्ञान क्या है एवं इसके प्रमुख लक्षण बताइए।
  37. प्रश्न- "प्रकृति को बचाएँ, प्राकृतिक जीवन शैली अपनाएँ।" इस वाक्य पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
  38. प्रश्न- भारतीय पारम्परिक ज्ञान एवं पर्यावरण संरक्षण पर टिप्पणी कीजिए।
  39. प्रश्न- पारम्परिक ज्ञान को परिभाषित करते हुए उसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  40. प्रश्न- जैव-विविधता से आप क्या समझते हैं? पारिस्थितिक तंत्र की स्थिरता में इसके योगदान की विवेचना कीजिए।
  41. प्रश्न- जैव विविधता संरक्षण हेतु भारत के राष्ट्रीय पार्कों तथा अभ्यारण्यों की भूमिका का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- पादप संरक्षण से आप क्या समझते हैं? विभिन्न संकटग्रस्त पादपों के संरक्षण के लिए किये गये विभिन्न उपायों की विवेचना कीजिए।
  43. प्रश्न- जैव-विविधता के विलोपन (ह्रास) के मुख्य कारण क्या हैं? उनका वर्णन कीजिए।
  44. प्रश्न- जैव विविधता के संरक्षण के उपायों पर प्रकाश डालिए।
  45. प्रश्न- जैव विविधता के संरक्षण की कौन-कौन सी विधियाँ हैं? पर्यावरण संतुलन में इसकी क्या भूमिका है?
  46. प्रश्न- जैव विविधता का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  47. प्रश्न- जैव विविधता के विभिन्न स्तरों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  48. प्रश्न- जैव विविधता में ह्रास के प्रमुख कारणों का उल्लेख कीजिए।
  49. प्रश्न- जैव विविधता संरक्षण के उपाय स्पष्ट कीजिए।
  50. प्रश्न- "वनोन्मूलन वातावरण का एक कारक है।' भारत के सन्दर्भ में इसकी विवेचना कीजिए।
  51. प्रश्न- भारतवर्ष में वातावरण का विनाश किन-किन क्षेत्रों में सर्वाधिक हुआ है? स्पष्ट कीजिए।
  52. प्रश्न- वन विनाश का पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभावों की विवेचना कीजिए।
  53. प्रश्न- भारत में वनोन्मूलन के कारणों का उल्लेख कीजिए।
  54. प्रश्न- वनों के महत्व को बताइये।
  55. प्रश्न- भारतीय वन व्यवसाय की समस्यायें बताइए।
  56. प्रश्न- भारत में वन संरक्षण नीति क्या है?
  57. प्रश्न- वन संरक्षण के उपाय बताइये।
  58. प्रश्न- भारत में वन संरक्षण नीतियों को समझाइए।
  59. प्रश्न- वन संरक्षण क्यों आवश्यक है?
  60. प्रश्न- वनों के विकास के कारक बताइये।
  61. प्रश्न- पर्यावरण के सुधार में वनीकरण की भूमिका क्या है?
  62. प्रश्न- चिपको आन्दोलन को समझाइए।
  63. प्रश्न- वन विनाश की समस्या पर टिप्पणी लिखिए।
  64. प्रश्न- मिट्टी के कटाव के प्रमुख प्रकार बताइये, मिट्टी के कटाव के प्रमुख कारणों का वर्णन कीजिए तथा इसके निस्तारण के उपाय बताइये।
  65. प्रश्न- मृदा अपरदन से उत्पन्न पर्यावरणीय समस्याएँ क्या हैं? मृदा अपरदन को रोकने के क्या उपाय हैं?
  66. प्रश्न- मृदा अपरदन से क्या तात्पर्य है?
  67. प्रश्न- मृदा क्षय और मृदा अपरदन रोकने के उपाय बताइये।
  68. प्रश्न- मिट्टी अपरदन के कारण क्या हैं? बताइये।
  69. प्रश्न- मृदा अपरदन में मुख्य रूप से कौन प्रक्रियायें सम्मिलित होती हैं? बताइये।
  70. प्रश्न- मृदा की अपरदनशीलता से क्या तात्पर्य है? मिट्टियों की अपरदनशीलता किन कारकों पर आधारित होती हैं? बताइये।
  71. प्रश्न- FAO के अनुसार कौन से कारक मृदा अपरदन को प्रभावित करते हैं बताइये?
  72. प्रश्न- मृदा संरक्षण के संदर्भ में विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  73. प्रश्न- मिट्टी की थकावट क्या है?
  74. प्रश्न- मरुस्थलीयकरण से आप क्या समझते हैं?
  75. प्रश्न- मरुस्थलीयकरण के कारणों की विवेचना कीजिए।
  76. प्रश्न- मरुस्थलीयकरण के प्रभाव बताइये।
  77. प्रश्न- मरुस्थलीय प्रक्रिया के प्रमुख रूपों की विवेचना कीजिए।
  78. प्रश्न- मरुस्थलीयकरण नियंत्रण के उपाय बताइये।
  79. प्रश्न- मरुस्थलीयकरण नियंत्रण के उपायों की विवेचना कीजिए।
  80. प्रश्न- मरुस्थल कितने प्रकार के होते हैं?
  81. प्रश्न- भारत के भेद में मरुस्थलीकरण के निरन्तर विस्तार को समझाइये |
  82. प्रश्न- पर्यावरण प्रदूषण भारत की मुख्य समस्या है। प्रदूषण समस्या की समीक्षा निम्नलिखित संदर्भ में कीजिए (i) वायु प्रदूषण (ii) जल प्रदूषण।
  83. प्रश्न- जल प्रदूषण की परिभाषा दीजिए। जल प्रदूषण के विभिन्न स्रोतों का वर्णन करते हुए नियंत्रण के उपाय बताइये।
  84. प्रश्न- जल संरक्षण एवं प्रबन्धन के महत्व की विवेचना करते हुए जल संरक्षण एवं प्रबन्धन की प्रमुख विधियों का विवरण लिखिए।
  85. प्रश्न- प्रदूषण किसे कहते हैं? वायु प्रदूषण के कारण एवं नियंत्रण का वर्णन कीजिये।
  86. प्रश्न- ठोस अपशिष्ट से क्या आशय है? ठोस अपशिष्ट के कारणों तथा प्रभावों की विवेचना कीजिए।
  87. प्रश्न- पर्यावरण प्रदूषण का मानव स्वास्थ्य पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है?
  88. प्रश्न- पर्यावरण प्रदूषण की परिभाषा बताइए।
  89. प्रश्न- पर्यावरण प्रदूषण के सामान्य कारणों को बताइए।
  90. प्रश्न- पर्यावरण संतुलन से क्या अभिप्राय है?
  91. प्रश्न- पर्यावरण प्रदूषक क्या है? इनके प्रकारों को बताइये।
  92. प्रश्न- पर्यावरण प्रदूषण का वर्गीकरण कीजिए।
  93. प्रश्न- वायु प्रदूषण क्या है?
  94. प्रश्न- वायु प्रदूषण की परिभाषा बताइये।
  95. प्रश्न- वायु प्रदूषकों के प्रकारों को बताइये।
  96. प्रश्न- वायु प्रदूषण के स्रोतों को बताइए।
  97. प्रश्न- वायु प्रदूषण के प्रकार बताइए।
  98. प्रश्न- भारत के सन्दर्भ में वायु प्रदूषण की समीक्षा कीजिए।
  99. प्रश्न- वायु प्रदूषण का पर्यावरण में प्रभाव को बताइए, तथा विवेचना कीजिए।
  100. प्रश्न- वायु प्रदूषण रोकने के उपाय बताइए।
  101. प्रश्न- जल प्रदूषण की प्रकृति को बताइए।
  102. प्रश्न- जल प्रदूषण का वर्गीकरण कीजिए।
  103. प्रश्न- गंगा प्रदूषण पर निबंध लिखिए या गंगा प्रदूषण की विवेचना कीजिए।
  104. प्रश्न- किन प्रमुख स्रोतों से गंगा का जल प्रदूषित हो जाता है कारण बताइए।
  105. प्रश्न- गंगा जल प्रदूषण को रोकने के उपाय बताइए।
  106. प्रश्न- जल प्रदूषण के प्रभावों को बताइए तथा इन कारकों की विवेचना कीजिए।
  107. प्रश्न- ध्वनि प्रदूषण के कारण एवं नियंत्रण पर प्रकाश डालिए।
  108. प्रश्न- मृदा प्रदूषण से आप क्या समझते हैं? परिभाषित कीजिए।
  109. प्रश्न- मृदा की गुणवत्ता में हास या अवनयन किन-किन कारणों से होता है, बताइए?
  110. प्रश्न- मृदा प्रदूषण के कारकों को बताइए तथा मिट्टी प्रदूषकों के नाम बताइए।
  111. प्रश्न- मिट्टी प्रदूषण के स्रोतों को बताइए।
  112. प्रश्न- मिट्टी प्रदूषण के कुप्रभाव बताइए।
  113. प्रश्न- ठोस अपशिष्टों के घटकों की विवेचना कीजिए।
  114. प्रश्न- ठोस अपशिष्ट प्रदूषण की परिभाषा बताइए।
  115. प्रश्न- ठोस अपशिष्ट के स्रोत बताइए।
  116. प्रश्न- ठोस अपशिष्ट के प्रकार बताइये तथा प्रत्येक की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  117. प्रश्न- ठोस अपशिष्टों का प्रदूषण में क्या योगदान है विवेचना कीजिए।
  118. प्रश्न- ठोस अपशिष्ट पदार्थों के निपटान के बारे में सुझाव दीजिए।
  119. प्रश्न- ध्वनि प्रदूषक क्या हैं?
  120. प्रश्न- प्रदूषित पेयजल जनित रोग बताइए?
  121. प्रश्न- "पर्यावरण प्रदूषण एक अभिशाप है।' स्पष्ट कीजिए।
  122. प्रश्न- जल संरक्षण की विधियों का विवेचन कीजिए।
  123. प्रश्न- ठोस अपशिष्ट क्या है?
  124. प्रश्न- गंगा एक्शन प्लान (GAP) का वर्णन कीजिए।
  125. प्रश्न- टिहरी उच्च बाँध परियोजना के क्या कारण थे? स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- टाइगर प्रोजेक्ट के विशेष सन्दर्भ में वन्य जीवन परिसंरक्षण की सार्थकता की विवेचना कीजिए।
  127. प्रश्न- भारत की बाघ परियोजना का विस्तार से वर्णन कीजिये।
  128. प्रश्न- नर्मदा घाटी परियोजना का वर्णन कीजिए।
  129. प्रश्न- नर्मदा घाटी से सम्बन्धित पर्यावरणीय चिन्ताएँ क्या हैं? स्पष्ट कीजिए।
  130. प्रश्न- गंगा एक्शन प्लान की समीक्षा कीजिए।
  131. प्रश्न- टिहरी बाँध परियोजना का वर्णन कीजिए।
  132. प्रश्न- टिहरी बाँध परियोजना के क्या उद्देश्य थे?
  133. प्रश्न- भारत में कितने टाइगर अभयारण्य हैं?
  134. प्रश्न- भारत में टाइगर प्रोजेक्ट योजना का निर्माण क्यों आवश्यक था?
  135. प्रश्न- गंगा कार्य योजना (गंगा एक्शन प्लान) के संस्थागत पहल के विषय में बताइए।
  136. प्रश्न- जलवायु परिवर्तन को समझना क्यों आवश्यक है?
  137. प्रश्न- ग्लोबल वार्मिंग क्या है? इसके मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों की विवेचना कीजिए।
  138. प्रश्न- वैश्विक उष्णता से आप क्या समझते हैं? इसके कारण तथा प्रभावों का वर्णन कीजिए।
  139. प्रश्न- हरित गृह प्रभाव की विवेचना कीजिए।
  140. प्रश्न- हरित गैस के प्रमुख स्रोत बताइए।
  141. प्रश्न- हरित गृह द्वारा कौन-कौन सी समस्यायें उत्पन्न होती हैं? समझाइए।
  142. प्रश्न- हरित गृह प्रभाव की रोकथाम को बताइए।
  143. प्रश्न- ओजोन क्षरण से मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों का मूल्यांकन कीजिए।
  144. प्रश्न- ओजोन परत क्षरण के कारण लिखिए।
  145. प्रश्न- भूमण्डलीय ताप वृद्धि के प्रभाव क्या है?
  146. प्रश्न- प्रमुख भूमण्डलीय समस्याओं को बताइये।
  147. प्रश्न- भूमण्डलीय तापन की विवेचना कीजिए।
  148. प्रश्न- प्रथम पृथ्वी सम्मेलन (रियो सम्मेलन) के प्रमुख मुद्दों को बताइए।
  149. प्रश्न- प्रथम पृथ्वी सम्मेलन के मुद्दों की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  150. प्रश्न- वैश्विक ताप वृद्धि के निवारक उपाय बताइए।
  151. प्रश्न- भारतीय पर्यावरण विधियों (अधिनियमों) की कमियाँ बताइये।
  152. प्रश्न- भारत पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का वर्णन कीजिए।
  153. प्रश्न- वैश्विक जलवायु आकलन आई.पी.सी.सी. पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  154. प्रश्न- आई.पी.सी.सी. की मूल्यांकन रिपोर्ट का वर्णन कीजिए।
  155. प्रश्न- जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल की व्याख्या कीजिए एवं आई.पी.सी.सी. की आकलन रिपोर्ट बताइए।
  156. प्रश्न- जलवायु परिवर्तन क्या है एवं इसके कारकों का उल्लेख कीजिए।
  157. प्रश्न- ग्लोबल वार्मिंग के कारण जलवायु परिवर्तन के संभावित वैश्विक प्रभाव को बताइए।
  158. प्रश्न- एशियाई क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का वर्णन कीजिए।
  159. प्रश्न- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना का वर्णन एवं इसके मिशन को भी बताइए।
  160. प्रश्न- राष्ट्रीय सौर मिशन की व्याख्या कीजिए।
  161. प्रश्न- उन्नत ऊर्जा दक्षता के लिये राष्ट्रीय मिशन के उद्देश्य क्या हैं?
  162. प्रश्न- सुस्थित निवास पर राष्ट्रीय मिशन का लक्ष्य बताइए।
  163. प्रश्न- राष्ट्रीय जल मिशन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  164. प्रश्न- सुस्थिर हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र हेतु राष्ट्रीय मिशन की व्याख्या कीजिए।
  165. प्रश्न- हरित भारत हेतु राष्ट्रीय मिशन का लक्ष्य क्या है .
  166. प्रश्न- सुस्थिर कृषि पर राष्ट्रीय मिशन की व्याख्या करें।
  167. प्रश्न- जलवायु परिवर्तन हेतु रणनीति ज्ञान पर राष्ट्रीय मिशन पर प्रकाश डालिए।
  168. प्रश्न- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  169. प्रश्न- "जलवायु परिवर्तन एवं भारतीय स्थिति पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  170. प्रश्न- जलवायु परिवर्तन के सम्बन्ध में भारत और अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर टिप्पणी लिखिए।
  171. प्रश्न- जलवायु परिवर्तन के प्रतिकार के प्रस्ताव की विवेचना कीजिए।
  172. प्रश्न- जलवायु हितैषी उपायों की व्याख्या कीजिए।
  173. प्रश्न- जलवायु परिवर्तन पर निगरानी रखने से आप क्या समझते हैं?
  174. प्रश्न- अनुसंधान क्षमता और संस्थागत आधारभूत संरचना का निर्माण जलवायु परिवर्तन के लिये क्यों आवश्यक है?
  175. प्रश्न- जलवायु परिवर्तन पर शैक्षिक ढाँचा क्यों आवश्यक है?
  176. प्रश्न- पर्यावरण प्रकोप से क्या आशय है? प्राकृतिक एवं मानव जनित प्रकोपों की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  177. प्रश्न- पर्यावरण प्रकोप तथा विनाश का अर्थ एवं परिभाषा को बताइए।
  178. प्रश्न- पर्यावरण प्रकोप के प्रकार बताइए।
  179. प्रश्न- प्राकृतिक प्रकोप की विवेचना कीजिए।
  180. प्रश्न- मानव जनित प्रकोप की विवेचना कीजिए।
  181. प्रश्न- प्रकोप के प्रति सामाजिक प्रतिक्रिया की विवेचना कीजिए।
  182. प्रश्न- प्राकृतिक प्रकोपों तथा आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए प्रबंधन के अन्तर्गत किन- किन पक्षों को सम्मिलित किया जाता है।
  183. प्रश्न- Idndr के तहत प्रकोप नयूनीकरण कार्यक्रम के उद्देश्य बताइये।
  184. प्रश्न- सूखा प्रकोप से आप क्या समझते हैं? सूखा प्रकोप के प्रभाव बताइये।
  185. प्रश्न- सूखा नियंत्रण के उपाय बताइये।
  186. प्रश्न- बाढ़ प्रकोप से आप क्या समझते हैं? बाढ़ के कारण बताइए।
  187. प्रश्न- बाढ़ नियंत्रण के उपाय बताइये।
  188. प्रश्न- भूकम्प प्रकोप का सामान्य परिचय देते हुए उनके प्रभावों को बताइए।
  189. प्रश्न- भारत के जोखिमकारी अवशिष्टों का प्रबन्धन क्यों आवश्यक है एवं देश में जोखिमकारी अवशिष्टों को पर्यावरणीय अनुकूलन की दृष्टि से प्रबन्धित करने हेतु विभिन्न हस्तक्षेपों का वर्णन कीजिए।
  190. प्रश्न- जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण से जैव विविधता के सामने प्रस्तुत खतरे और समाधान को बताइए।
  191. प्रश्न- "आक्रामक विजातिय प्रजातियों से नियंत्रित होने का खतरा बना रहता है। कथन की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  192. प्रश्न- जोखिमकारी अवशिष्टों के उत्पन्न होने के क्या कारण हैं?
  193. प्रश्न- अवशिष्टों की उत्पत्ति पर कैसे नियंत्रण किया जा सकता है?
  194. प्रश्न- "पुनर्उपयोग, पुनः प्राप्त करना पुनर्चक्रणीय जोखिमकारी अवशिष्ट" की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  195. प्रश्न- जोखिमकारी नियामक ढाँचे से आप क्या समझते हैं?
  196. प्रश्न- 'अधिवास के नुकसान से दबाव, अवमूल्यन में कमी से आप क्या समझते हैं?
  197. प्रश्न- राष्ट्रीय वानिकी और पारिस्थितिकीय विकास बोर्ड के कार्य बताइए।
  198. प्रश्न- प्राकृतिक आपदाओं के प्रकार एवं आपदा प्रबन्धन का वर्णन कीजिए।
  199. प्रश्न- कृषि व सिंचाई की दृष्टि से जल की उपलब्धता व सूखे का वर्णन कीजिए।
  200. प्रश्न- सूखा-प्रणत क्षेत्र कार्यक्रम का वर्णन कीजिए।
  201. प्रश्न- आपदा के समय क्या करना एवं क्या न करना चाहिए?
  202. प्रश्न- प्राकृतिक आपदाएँ एवं प्रबन्धन के विषय में बताइए।
  203. प्रश्न- प्राकृतिक आपदाओं से अत्यधिक प्रभावित राज्य कौन से हैं?
  204. प्रश्न- सूखा अथवा अनावृष्टि को परिभाषित कीजिए।
  205. प्रश्न- जल की उपलब्धता पर सूखे के प्रभाव का वर्णन कीजिए।
  206. प्रश्न- सुनामी आपदा क्या है? परिभाषित कीजिए।
  207. प्रश्न- भारतीय तटों पर सुनामी का वर्णन कीजिए।
  208. प्रश्न- 26 दिसम्बर 2004 का सुनामी आपदा का वर्णन कीजिए।
  209. प्रश्न- सुनामी द्वारा लाये गये परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए।
  210. प्रश्न- 2013 की अनावृष्टि (सूखा) का विवरण दीजिए।
  211. प्रश्न- परमाणु आपदा का विवरण दीजिए। इससे होने वाले विनाशों का वर्णन कीजिए।
  212. प्रश्न- रासायनिक आपदा क्या है? परिभाषित कीजिए।
  213. प्रश्न- किसी आपात या रासायनिक आपात स्थिति के दौरान क्या करना चाहिए?
  214. प्रश्न- नाभिकीय / रेडियोधर्मी प्रदूषण को रोकने के उपाय का वर्णन कीजिए।
  215. प्रश्न- भू-स्खलन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

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